Wednesday, June 24, 2009

ਮਿੱਤਰ ਦੀ ਕਲਮ ਤੋਂ- बेनाम-सा कोई रिश्ता बनाएँਃ

मैं तुझे "ए" कहकर बुलाऊँ,
तू मुझे "ओए" कहकर बुलाना अब से,
ना मैं तुझसे पूछूँ कभी नाम तेरा,
ना तुझे हो कोई मतलब मेरे दिनो-मज़हब से,

दिनभर करते रहें हम बातें बेफ़िज़ुल-सी,
मतलब जिनका किसी को ना पता हो,
या फिर यूँ ही देखते रहें इक दूजे को,
वक्त जैसे ओस की बूँदो-सा ठहरा हो,

ना मेरे काधों पे रखा हो बोझ तेरी ख्व्वाहिशों का,
ना मैं तेरी आखों में रखूँ कोई ख्वाब अपना,
ना मेरी खामोशी में हो कोई सवाल तेरे लिए,
ना मैं तेरी खामोशी में तलाश करूँ कोई जवाब अपना,

ना करें कोई वादा उमर भर साथ निभाने का,
बस जब जी चाहें जुदा कर लें राहें अपनी,
मगर ख्याल इतना रहे, जो फिर मिलें ज़िंदगी के किसी मोड पर,
ना इक-दूजे से चुरानी पडें हमें निगाहें अपनी,

आओ बेनाम-सा कोई रिश्ता बनाएँ

*ਅਮੀਤ ਦਾਂਦਯਾਨ*

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